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Manu Ka Virodh Kyon ?
Rs.15.00Rs.10.00Sold By : The Rishi Mission Trustआजकल हवा में एक शब्द उछाल दिया गया है- ‘मनुवाद’, किन्तु इसका अर्थ नहीं बताया गया है। इसका प्रयोग भी उतना ही अस्पष्ट और लचीला है, जितना राजनीतिक शब्दों का। मनुस्मृति के निष्कर्ष के अनुसार मनुवाद का सही अर्थ है- ‘गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्त्व पर आधारित विचारधारा’, और तब, ‘अगुण-अकर्म-अयोग्यता के अश्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित विचारधारा’ को कहा जायेगा – ‘गैर मनुवाद’ ।
अंग्रेज-आलोचकों से लेकर आज तक के मनुविरोधी भारतीय लेखकों ने मनु और मनुस्मृति का जो चित्र प्रस्तुत किया है, वह एकांगी, विकृत, भयावह और पूर्वाग्रहयुक्त है। उन्होंने सुन्दर पक्ष की सर्वथा उपेक्षा करके असुन्दर पक्ष को ही उजागर किया है। इससे न केवल मनु की छवि को आघात पहुंचता है, अपितु भारतीय धर्म, संस्कृति-सभ्यता, साहित्य, इतिहास, विशेषत: धर्मशास्त्रों का विकृत चित्र प्रस्तुत होता है, उससे देश-विदेश में उनके प्रति भ्रान्त धारणाएं बनती हैं। धर्मशास्त्रों का वृथा अपमान होता है। हमारे गौरव का ह्रास होता है।
इस लेख के उद्देश्य हैं-मनु और मनुस्मृति की वास्तविकता का ज्ञान कराना, सही मूल्यांकन करना, इस सम्बन्धी भ्रान्तियों को दूर करना और सत्य को सत्य स्वीकार करने के लिए सहमत करना। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जन्मना जाति-व्यवस्था से हमारे समाज और राष्ट्र का ह्रास एवं पतन हुआ है, और भविष्य के लिए भी यह घातक है। किन्तु इस एक परवर्ती त्रुटि के कारण समस्त गौरवमय अतीत को कलंकित करना और उसे नष्ट-भ्रष्ट करने का कथन करना भी अज्ञता, अदूरदर्शिता, दुर्भावना और दुर्लक्ष्यपूर्ण है। यह आर्य (हिन्दू) धर्म, संस्कृति-सभ्यता और अस्तित्व की जड़ों में कुठाराघात के समान है।
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