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स्त्रियों का वेदाध्ययन और वैदिक कर्मकांड में अधिकार striyon ka vedadhyayan aur vaidik karmakand mein adhikar

Rs.36.00

“स्त्रियों का वेदाध्ययन और कर्मकाण्ड में अधिकार” इस प्रौढ़, पाण्डित्त्यपूर्ण तथा प्रमाणबहुल पुस्तक के लेखक वेदादि-विविध-शास्त्रों के सुपरिवेत्ता तथा मर्मज्ञ पूज्य पण्डितवर्य धर्मदेव विद्यामार्त्तण्ड हैं। प्रस्तुत पुस्तक के प्रारम्भिक चार अध्यायों में चारों वेदों, ब्राह्मणग्रन्थों, श्रौतसूत्रों, गृह्यसूत्रों तथा मनु- वसिष्ठ- हारीतादि स्मृतिग्रन्थों के तत्तत् स्थल प्रदर्शित किये गये हैं जिनसे नारियों के वेदाध्ययन और कर्मकाण्ड में अधिकार की प्रबल पुष्टि होती है । ‘ऐतिहासिक दृष्टि से विचार’ नामक पञ्चम अध्याय में आर्षानुक्रमणी में प्रदत्त मन्त्रद्रष्ट्री ऋषिकाओं की सूची से लेकर ब्राह्मणग्रन्थ, रामायण, महाभारत तथा पुराणों में विद्यमान वेदविदुषी के ब्रह्मवादिनी महिलाओं के नाम प्रदर्शित किये गये हैं। साथ ही ‘शंकरदिग्विजय’ का पं० मण्डनमिश्र की विदुषी पत्नी उभयभारती द्वारा स्वामी शङ्कराचार्य को शास्त्रार्थ के लिये ललकारने का रोचक संवाद भी दिया गया है। समग्र पुस्तक के अवलोकन के पश्चात् यह निस्सन्दिग्ध रूप से कहा जा सकता है कि वेदादि शास्त्रों का नारी-शिक्षासमर्थक कोई भी ऐसा शास्त्रीय या ऐतिहासिक प्रमाण शेष नहीं रहता जिसे इस पुस्तक में संगृहीत न किया गया हो। अस्तु।

प्रस्तुत पुस्तक की रचना की पृष्ठभूमि में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अरबी फारसी विभाग के अध्यक्ष प्रो० महेशप्रसाद आलिम फ़ाजिल की सुपुत्री कल्याणी देवी को कतिपय कट्टरपन्थी पण्डितों द्वारा वेदमध्यमा कक्षा में प्रवेश की अनुमति न दिये जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना समाविष्ट है। इस घटना ने सभी आर्यों को आन्दोलित कर दिया था। आर्यसमाज की शिरोमणि सभा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के तत्कालीन सुयोग्य तेजस्वी प्रधान – महात्मा नारायण स्वामी जी के नेतृत्व में इस प्रतिबन्ध के विरोध में आन्दोलन हुआ, आर्य पत्रों में लेख लिखे गये, शास्त्रार्थ के लिये चुनौतियाँ दी गईं। फलतः काशी हिन्दू विश्वविद्यालयान्तर्गत धर्म विज्ञान महाविद्यालय की वेदमध्यमा कक्षा में कल्याणी देवी को प्रवेश मिल गया । पुनरपि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं० मदनमोहन मालवीय द्वारा इस विषय पर विचार करने के लिये गठित की गई उपसमिति ने पौरोहित्य और कर्मकाण्ड विषय में कन्याओं का प्रवेश निषिद्ध ही रखा।

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