Homeopathic Materia Medica With Repertory | Dr. William Boric
Rs.504.00
यह ओषधि तीसरे पहर में होने वाले ज्वर और शरीर के विभिन्न अंगों में आमवाती दर्द उत्पन्न कर देती है। पीठ, कन्धों एवं सीने के पंजर और पसलियों में दर्द। हाथों में, विशेषकर हथेलियों और हाथ-पांव की उंगलियों में गरमी, टीस एवं चुभन ।
सिर-सिरदर्द, उठने में चक्कर, खोपड़ी की खाल कोमल, भूलना, आंखों में जलन, दाहिनी आंख के ढेले में दर्द।
सम्बन्ध – तुलनीय – आर्सेनिक, सेड्रोन, नैटूम म्यूर –
अर्टिका यूरेंस (Urtica Urens)
(स्टिगिंग-नेटल)
प्रसव के बाद स्तनों में दूध की कमी और शरीर में अश्मरी बनना। गठिया और मूत्र अम्ल में गड़बड़ी, अनैच्छिक मूत्रस्राव और जुलपित्ती, श्लैष्मिक झिल्ली से अधिक स्राव, प्रतिवर्ष उसी समय का वापस आना, तिल्ली रोग, स्नायु प्रदाह । निष्कासन क्रिया को प्रोत्साहित करती है तथा घोघो खाने के बुरे प्रभाव को दूर करती है।
स्त्री- स्तनों में दूध की कमी, योनि घुण्डी की प्रबल खाज, चुभन और शोथ, स्तनों का अधिक फूलना, गर्भाशय से रक्तस्राव, तेजाबी और काटने वाला प्रदर, सतन्यकाल समाप्त करने के बाद दूधस्राव को बन्द करती है ।
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