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Yog Sadhana Adhunik Priprekshaya men

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हमारा अध्यात्मवादी देश भारत, अब विकसित देशों से भौतिकसमृद्धि के लिए स्पर्धा में लगा हुआ है और वह शीघ्र ही विकसित देशों की श्रेणी में परिगणित होगा, इसमें भी सन्देह नहीं है। मैं व्यक्तिगत रूप से इसे बुरा नहीं समझता क्योंकि सब प्रकार से साधन-सम्पन्न और शस्य श्यामला इस भारत-भूमि की सन्तानें हजारों वर्षों से भौतिक समृद्धि से वंचित रही हैं और आज भी लगभग 30 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे दरिद्र और अशिक्षित हैं। इसके लिए हम किसी अन्य देश या जाति को दोषी नहीं ठहरा सकते। भूल हमसे हुई। यह भूल ज्ञान या दर्शन के स्तर पर नहीं बल्कि व्यवहार के स्तर पर हुई। हमारा ज्ञान और दर्शन तो इतना गगनस्पर्शी हो गया कि हमारे पैरों का भूमि-स्पर्श ही समाप्त हो गया। हमें हमारा अंतिम पुरुषार्थ ‘मोक्ष’ इतना भा गया कि धर्म, अर्थ और काम ये तीनों प्रारम्भिक पुरुषार्थ धरे के धरे रह गए। अब समय ने पलटा खाया है और हम अपने प्रथम पुरुषार्थ धर्म की उपेक्षा करते हुए केवल काम और अर्थ पर केन्द्रित होते जा रहे हैं। यह असंतुलन सराहनीय नहीं कहा जा सकता क्योंकि हम अतिवाद और एकांगीपन का द्रण्ड पहले ही बहुत भुगत चुके हैं। यदि हम दूसरों की देखा-देशी अति भौतिकवादी हो गए तो फिर एक दूसरे प्रकार की पीड़ा और यातना को भोगने के लिए हमें कमर कस कर तैयार हो जाना चाहिए। वह पीड़ा और यातना क्या होगी, इसे विकसित देशों की जीवनपद्धति से समझा जा सकता है। फिर हमें नींद की गोलियाँ खाए बिना नींद नहीं आएगी। हममें से प्रत्येक को अपना-अपना मनोचिकित्सक खोजना होगा, अविवाहित कन्याओं के बच्चे अनाथों के रूप में बड़े होकर अपराधी बनेंगे और दाम्पत्य या पारिवारिक जीवन अभिशाप बन कर रह जाएगा।

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Weight 300 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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