Vedon Ko Jane
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किसी आठवीं कक्षा के विद्यार्थी से वेद और आर्यों के विषय में सामान्य से प्रश्न पूछें, वह उत्तर देगा- आर्य लोग बाहर से आये थे, वेद गड़रियों के गीत हैं, वैदिक काल में यज्ञों में पशु बलि का विधान था – आर्य लोग सोमरस का नशा करते थे, वेदों में यम-यमी के रूप में भाई-बहन का अश्लील संवाद है। नारी और शूद्र को वेद पढ़ने, सुनने का कोई अधिकार नहीं है। वेदों के विषय में 99 प्रतिशत जन सामान्य की यही मान्यता है। वेदों के सत्य सन्देश से लगभग सम्पूर्ण मानव जाति अनभिज्ञ है। इस शोचनीय अवस्था के दो प्रमुख कारण हैं। प्रथम तो वेदों के सत्य ज्ञान से जनमानस को शिक्षित करने का कोई भी विकल्प पाठ्यक्रम के माध्यम से उपलब्ध नहीं है, दूसरा वेदों के विषय में भ्रांतियों का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो रहा है। इसे हम मनुष्य जाति के साथ अन्याय ही कहेंगे कि आज के युग में जब विज्ञान इतनी प्रगति कर चुका है, जब टेलीविजन, इंटरनेट आदि के सशक्त माध्यम उपलब्ध हैं, उस पर भी वेदों को जनमानस तक पहुँचाने का कोई सार्थक एवं दूरगामी प्रयास प्रभावशाली स्तर पर हमें देखने को नहीं मिल रहा है। वेदों के प्रति अश्रद्धा एवं अविश्वास के चलते न जाने कितने हिन्दू हर वर्ष नास्तिक और विधर्मी बनकर अपना जीवन सार्थक बनाने के स्थान पर व्यर्थ कर देते हैं । वे स्वयं भी अंधकारमय जीवन जीते हैं अन्यों को भी भ्रमित कर उनका जीवन भी नष्ट कर देते हैं। इस पुस्तक को लिखने का मूल उद्देश्य वेदों के विषय में निरंतर फैल रही इन्हीं भ्रांतियों का निवारण कर सत्य का प्रचार करना है, जिससे मानव जाति के मन में वेदों के प्रति न केवल श्रद्धा की वृद्धि हो अपितु वेदों के महान सन्देश का पालन कर सभी जीवन में उन्नति कर मोक्ष पथ के गामी बने । इस पुस्तक में मैंने स्वामी दयानंद एवं उनकी वेदार्थ शैली का अनुसरण
करने वाले अनेक विद्वानों के पुरुषार्थ रूपी साहित्य को सरल, पुस्तक रूप में संग्रहीत करने का प्रयास मात्र किया है।
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